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इस तीर्थ में छुपा हुआ है भगवान कृष्ण के देह त्यागने का राज़

07-01-2019






सोमनाथ मंदिर से करीब 5 किलोमीटर दूर वेरावल में भालका तीर्थ स्थल है। इस तीर्थ स्थल का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। लोक कथाओं के अनुसार कहा जाता है की इस मंदिर में श्री कृष्ण नें अपना देह त्यागा था। भालका तीर्थ भगवान श्री कृष्ण के अंतिम सांस का साक्षी माना जाता है, लेकिन भक्तों का मानना है की इस पवित्र स्थान में भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस प्रमुख धार्मिक केंद्र के बारे में यहां हर रोज़ आने वाले श्रृद्धालु बताते हैं की सच्चे मन से यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यहां आया हुआ कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता। क्योंकि यहां श्री कृष्ण के होने का अहसास हमेशा होता है, इसका साक्षी यहां मौजूद 5 हजार साल पुराना पीपल का पेड़ है जो कभी नहीं सूखता।

लोक कथाओं के अनुसारमहाभारत युद्ध खत्म होने के बाद 36 साल बाद तक यादव कुल मद में आ गए। आपस में ही झगडऩे लगे और एक दूसरे को ही खत्म करने लगे। इसी कलह से परेशान होकर कृष्ण सोमनाथ मंदिर से करीब सात किलोमीटर दूर वैरावल की इस जगह पर विश्राम करने आ गए। ध्यानमग्र मुद्दा में लेटे हुए थे कि वहां से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर मौजूद जरा नाम के भील को कुछ चमकता हुआ नजर आया। उसे लगा कि यह किसी मृग की आंख है और बस उस ओर तीर छोड़ दिया, जो सीधे कृष्ण के बाएं पैर में जा धंसा। जब जरा करीब पहुंचा तो देखकर रुदन करने लगा, उसके वाण से खुद कृष्ण घायल हुए थे। जिसे उसने मृग की आंख समझा था, वह कृष्ण के बाएं पैर का पदम था, जो चमक रहा था। भील जरा को समझाते हुए कृष्ण ने कहा कि क्यों व्यर्थ ही विलाप कर रहे हो, यह नियति है।

ऐसे कहलाया भलका तीर्थ

भगवान श्री कृष्ण ने व्याघ को क्षमा कर दिया और अपनी कान्ती से वसुंधरा को व्याप्त करके निजधाम प्रस्थान कर गए। यहां व्याध ने भगवान श्री कृष्ण जी को भल्ल यानी बाण मारा था इसीलिए यह स्थान भल्ल भलका तीर्थ कहा जाता है।

कैसे पहुंचे भलका तीर्थ

कैसे करें प्रवेश आप भालका तीनों मार्गों से आसानी से पहुंच सकते हैं। यह तीर्थ स्थान अच्छी तरह रेल/ सड़क/ वायु मार्गों से जुड़ा हुआ है। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन वेरावल है। हवाई मार्ग के लिए आप राजकोट /केशोद हवाई अड्डे का सहारा ले सकते हैं। आप चाहें तो यहां सड़क मार्गों से भी पहुंच सकते हैं। भालका गुजरात के बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

 
 

मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव के सामने बोल दें ये दो नाम, पूरी होगी हर मनोकामना

हर व्यक्ति अपने जीवन में तरक्की, समाज में मान-सम्मान और वरचस्व चाहता है। व्यक्ति की चाहत होती है की जब भी वह कहीं समाज में रहे तो वह सबके आकर्षण का केंद्र रहे और कुछ लोगों की यह इच्छा पूरी भी होती है। लेकिन कुछ लोग इससे कोसो दूर होते हैं। ज्योतिष के अनुसार इसका सबसे बड़ा कारण कुंडली में सूर्य की स्थिति का गलत जगह होना दर्शाता है। ज्योतिषशास्त्र के अऩुसार सूर्य को आकर्षण, प्रभाव, सरकारी नौकरी और व्यक्ति के तेज का कारक ग्रह माना जाता है। इसी के साथ सूर्य पूजा करने से व्यक्ति को हर जगह मान-सम्मान, आकर्षण और वर्चस्व बना रहता है। वैसे सूर्य आराधना के लिए रविवार का दिन माना जाता है, लेकिन इसके अलावा हिंदू पंचांग के अनुसार सालभर में आने वाले प्रमुख त्यौहारों में से एक त्यौहार मकर संक्रांति भी सूर्य पूजा-आराधना, उपाय के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन माना जाता है। पंडित रमाकांत मिश्रा के अऩुसार संक्रांति के दिन सूर्योदय होते ही सूर्यदेव के सामने दो नाम बोल देने से सूर्य देवता प्रसन्न हो जाते हैं, वहीं कुंडली में सूर्य की अशुभ स्थिति को शुभता प्रदान करते हैं। व्यक्ति के कार्यों में आ रही रुकावटें दूर होती है। तो आइए जानते हैं मकर संक्रांति के दिन किन दो नामों को सूर्य देव के सामने बोलना चाहिए...

सूर्यदेव के सामने 3 बार करें इस मंत्र का जाप

पंडित जी बताते हैं की संक्रांति के दिन सूर्यदेव को जल चढ़ाते समय 'ओउम कुबेर सूर्य आदिव्योम' नाम का 3 बार जाप कर लें। इस मंत्र का जाप करने से आपको सकारात्मक उर्जा प्राप्त होगी। जो आपके कार्यों में आ रही बाधाओं को दूर कर देगी। इसके अलावा इस मंत्र को सूर्यदेव के सामने बोलने से आपकी मनोकामनाएं भी जल्द पूरी होंगी। वहीं घर में क्लेश खत्म होकर सुख-शांति बनी रहेगी।