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पहला सुख निरोगी काया, जानें प्राणायाम से कैसे बढ़ती है आयु

28-06-2018





प्राणायाम को आयुर्वेद में मन, मस्तिष्क और शरीर की औषधि माना गया है।

शास्त्रों में कहा गया है कि पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख घर में माया। यानी धन को स्स्वास्थ्य के बाद महत्व दिया गया है। अगर शरीर स्वस्थ्य है, तो आदमी चाहें जितनी दौलत कमा सकता है। मगर, चाहें जितनी दौलत हो, वह स्वास्थ्य को खरीद नहीं सकता है।

लिहाजा वैदिक पद्धति में शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए कई विधियां बताई गई हैं। इनमें से सबसे आसान और प्रभावी विधि है प्राणायाम। यह शरीर के साथ ही मन-मस्तिष्क पर भी काम करता है और व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही मन को स्थिर और शांत करता है। योग से आप तन-मन से स्वस्थ रहने के साथ ही अपनी उम्र भी बढ़ाकर ज्यादा वर्षों तक जीवित रह सकते हैं।

योग के 8 अंगों में प्राणायाम का स्थान चौथे नंबर पर आता है। प्राणायाम को आयुर्वेद में मन, मस्तिष्क और शरीर की औषधि माना गया है। चरक ने वायु को मन का नियंता एवं प्रणेता माना है।

प्राणायाम से गुल्म, जलोदर, प्लीहा तथा पेट संबंध सभी रोग पूर्ण रूप से खत्म हो जाते हैं। प्राणायाम द्वारा 4 प्रकार के वात दोष और कृमि दोष को भी नष्ट किया जा सकता है। इससे मस्तिष्क की गर्मी, गले के कफ संबंधी रोग, पित्त, ज्वर, प्यास अधिक लगने जैसी परेशानियों से भी निजात पाई जा सकती है।

प्राणायाम करते समय 3 क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक, 2.कुंभक और 3.रेचक

पूरक- नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खींचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

कुंभक- अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुंभक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

रेचक- अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

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इसके बाद आप भ्रस्त्रिका, कपालभाती, शीतली, शीतकारी और भ्रामरी क्रिया भी यदि करेंगे, तो पूर्ण लाभ मिल सकेगा। भ्रामरी से सर्दी-जुकाम और एलर्जी दूर हो जाती है। मस्तिष्क को फिर से उर्जा प्राप्त होती है।

कपालभाती से गैस, कब्ज, मधुमेह, मोटापा जैसे रोग दूर रहते हैं और मुखमंडल पर तेज कायम हो जाता है। 10 मिनट अनुलोम-विलोम करने से सिरदर्द ठीक हो जाता है। नकारात्मक चिंतन से चित्त दूर होकर आनंद और उत्साह बढ़ जाता है।

नाड़ी शोधन के लाभ

अंत में नाड़ी शोधन किया जाना चाहिए। इसके नियमित अभ्यास से मस्तिष्क शांत रहता है और सभी तरह की चिंताएं दूर हो जाती हैं। 3 बार नाड़ी शोधन करने से रक्त संचार ठीक तरह से चलने लगता है। इसके नियमित अभ्यास से बधिरता और लकवा जैसे रोग भी मिट जाते हैं। इससे शरीर में ऑ‍क्सीजन का लेवल बढ़ जाता है।