हर साल पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• रà¥à¤ª से बरà¥à¤« से बनने वाले पवितà¥à¤° शिवलिंग के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठलोग अमरनाथ यातà¥à¤°à¤¾ करते हैं। अमरनाथ हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं का à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– तीरà¥à¤¥à¤¸à¥à¤¥à¤² है। यह शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र शहर के उतà¥à¤¤à¤°-पूरà¥à¤µ में १३५ सहसà¥à¤¤à¥à¤°à¤®à¥€à¤Ÿà¤° दूर समà¥à¤¦à¥à¤°à¤¤à¤² से १३,६०० फà¥à¤Ÿ की ऊà¤à¤šà¤¾à¤ˆ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। इस गà¥à¤«à¤¾ की लंबाई (à¤à¥€à¤¤à¤° की ओर गहराई) १९ मीटर और चौड़ाई १६ मीटर है। गà¥à¤«à¤¾ ११ मीटर ऊà¤à¤šà¥€ है। अमरनाथ गà¥à¤«à¤¾ à¤à¤—वान शिव के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• है। अमरनाथ को तीरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का तीरà¥à¤¥ कहा जाता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कि यहीं पर à¤à¤—वान शिव ने माठपारà¥à¤µà¤¤à¥€ को अमरतà¥à¤µ का रहसà¥à¤¯ बताया था।
यहाठकी पà¥à¤°à¤®à¥à¤– विशेषता पवितà¥à¤° गà¥à¤«à¤¾ में बरà¥à¤« से पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• शिवलिंग का निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ होना है। पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• हिम से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ होने के कारण इसे सà¥à¤µà¤¯à¤‚à¤à¥‚ हिमानी शिवलिंग à¤à¥€ कहते हैं। आषाढ़ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ से शà¥à¤°à¥‚ होकर रकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवितà¥à¤° हिमलिंग दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठलाखों लोग यहां आते हैं। गà¥à¤«à¤¾ की परिधि लगà¤à¤— डेढ़ सौ फà¥à¤Ÿ है और इसमें ऊपर से बरà¥à¤« के पानी की बूà¤à¤¦à¥‡à¤‚ जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूà¤à¤¦à¥‹à¤‚ से लगà¤à¤— दस फà¥à¤Ÿ लंबा शिवलिंग बनता है। चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤¾ के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बरà¥à¤« का आकार à¤à¥€ घटता-बढ़ता रहता है। शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावसà¥à¤¯à¤¾ तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बरà¥à¤« का बना होता है, जबकि गà¥à¤«à¤¾ में आमतौर पर कचà¥à¤šà¥€ बरà¥à¤« ही होती है जो हाथ में लेते ही à¤à¥à¤°à¤à¥à¤°à¤¾ जाà¤à¥¤ मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फà¥à¤Ÿ दूर गणेश, à¤à¥ˆà¤°à¤µ और पारà¥à¤µà¤¤à¥€ के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।
कहा जाता है कि इसी गà¥à¤«à¤¾ में माता पारà¥à¤µà¤¤à¥€ को à¤à¤—वान शिव ने अमरकथा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ थी, जिसे सà¥à¤¨à¤•à¤° सदà¥à¤¯à¥‹à¤œà¤¾à¤¤ शà¥à¤•-शिशॠशà¥à¤•à¤¦à¥‡à¤µ ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गà¥à¤«à¤¾ में आज à¤à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं को कबूतरों का à¤à¤• जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ अमर पकà¥à¤·à¥€ बताते हैं। वे à¤à¥€ अमरकथा सà¥à¤¨à¤•à¤° अमर हà¥à¤ हैं। à¤à¤¸à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ à¤à¥€ है कि जिन शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शिव पारà¥à¤µà¤¤à¥€ अपने पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ से निहाल करके उस पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ को मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं। यह à¤à¥€ माना जाता है कि à¤à¤—वान शिव ने अदà¥à¤°à¥à¤§à¤¾à¤—िनी पारà¥à¤µà¤¤à¥€ को इस गà¥à¤«à¤¾ में à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ कथा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ थी, जिसमें अमरनाथ की यातà¥à¤°à¤¾ और उसके मारà¥à¤— में आने वाले अनेक सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ हà¥à¤ˆà¥¤
कà¥à¤› विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ का मत है कि à¤à¤—वान शंकर जब पारà¥à¤µà¤¤à¥€ को अमर कथा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ ले जा रहे थे, तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अनà¥à¤¯ पिसà¥à¤¸à¥à¤“ं को पिसà¥à¤¸à¥‚ टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक सà¥à¤¥à¤² पर छोड़ा था। ये तमाम सà¥à¤¥à¤² अब à¤à¥€ अमरनाथ यातà¥à¤°à¤¾ में आते हैं।