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जोड़ों की अकडऩ दूर करती थैरेपी

27-07-2018




 


आयुर्वेद चिकित्सा में अग्निकर्म थैरेपी काफी कारगर मानी जाती है। इसका इस्तेमाल ज्यादातर उस अवस्था या बीमारी में किया जाता जिसमें औषधि से न के बराबर असर हो। आधुनिक चिकित्सा में भी इस थैरेपी को प्रयोग में लिया जा रहा है। जिसे काटरी यानी जलाना कहते हैं।

ऐसे करते प्रयोग

जोड़, कमर व घुटने के दर्द, कंधे की जकडऩ, गठिया, सियाटिका आदि रोगों में पांच तरह की मेडिकेटेड सलाकों (सोना, चांदी, तांबा, वंग और लोहा) से प्रभावित हिस्से की सिंकाई की जाती है। इसमें सलाका के केवल आगे के भाग को (चने की दाल जितना हिस्सा) लाल होने तक गर्म करके प्रभावित हिस्से की बेहद थोड़ी सी जगह की सिंकाई करते हैं।

गर्म सलाका एंटीसेप्टिक की तरह काम करती है। इसमें रोग के अनुसार त्वचा की मोटाई को भी ध्यान में रखते हैं। रोग की गंभीरता और अवस्था के अनुसार हिस्से को दागने के बाद उस स्थान पर ग्वारपाठा लगा देते हैं ताकि जलन और दर्द खत्म हो जाएं।

अग्निकर्म थैरेपी में जिस जगह दर्द या परेशानी होती है वहां एक से डेढ़ सेकंड के लिए गर्म सलाका को लगाया जाता है। इससे उस हिस्से की कोशिका को या तो नष्ट कर देते हैं या फिर उसकी सिंकाई कर दी जाती है।

सिंकाई का असर

मरीज की समस्या के बारे में जानने के बाद रोग की जड़ को समझते हैं। जहां से दर्द और समस्या की शुरुआत हुई हो वहां पर एक से डेढ़ सेकंड के लिए गर्म सलाका को रखते हैं। ऐसा करने से उस हिस्से की कोशिका को या तो नष्ट कर दिया जाता है या फिर उसकी सिंकाई कर दी जाती है ताकि वह कोशिका दर्द का कारण न बन सके।

ध्यान रखें

एक-डेढ़ सेकंड से ज्यादा समस्या वाली जगह पर सिंकाई न करें वरना मरीज बेहोश भी हो सकता है।
इलाज होने के बाद यदि प्रभावित हिस्से में ज्यादा दर्द हो तो लगभग ५-६ दिन तक ग्वारपाठा या पिसी हल्दी लगा सकते हैं।

छोटे बच्चे, डरपोक, दिमागी रूप से कमजोर, गर्भवती महिला, कैंसर के रोगी, डायबिटीज आदि मरीज इस थैरेपी को न अपनाएं। किसी विशेषज्ञ से ही यह थैरेपी करवाएं।