मधà¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में महाकाल नगरी के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ शहर उजà¥à¤œà¤¯à¤¿à¤¨à¥€ के नाम से जाना जाता था। उजà¥à¤œà¤¯à¤¿à¤¨à¥€ में राजा चंदà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ का राज था। राजा चंदà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ à¤à¤—वान शिव के परम à¤à¤•à¥à¤¤ थे और शिवगणों में मà¥à¤–à¥à¤¯ मणिà¤à¤¦à¥à¤° नामक गण राजा चंदà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ के मितà¥à¤° थे। à¤à¤• बार राजा के मितà¥à¤° मणिà¤à¤¦à¥à¤° ने राजा चंदà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ को à¤à¤• चिंतामणि पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की जोकी बहà¥à¤¤ ही तेजोमय थी। राजा चंदà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ ने मणि को अपने गले में धारण कर लिया। लेकिन मणि को धारण करते ही पूरा पà¥à¤°à¤à¤¾à¤®à¤‚डल जगमगा उठा और इसके साथ ही दूसरे देशों में à¤à¥€ राजा की यश-कीरà¥à¤¤à¤¿ बà¥à¤¨à¥‡ लगी। राजा के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ और यश देखकर अनà¥à¤¯ राजाओं ने मणि को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठकई पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किà¤à¥¤
लेकिन मणि राजा की अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¿à¤¯ थी इस कारण से राजा नें किसी को मणि नहीं दी। इसलिठराजा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मणि ना देने पर अनà¥à¤¯ राजाओं नें आकà¥à¤°à¤®à¤£ कर दिया। उसी समय राजा चंदà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ à¤à¤—वान महाकाल की शरण में जाकर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤®à¤—à¥à¤¨ हो गया।
जब राजा चंदà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ बाबा महाकाल के समाधिसà¥à¤¥ में थे। उस समय वहां गोपी अपने छोटे बालक को साथ लेकर दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठआà¤à¥¤ बालक की उमà¥à¤° महज पांच वरà¥à¤· की थी और गोपी विधवा थी। राजा चंदà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤®à¤—à¥à¤¨ देखकर बालक à¤à¥€ शिव की पूजा करने के लिठपà¥à¤°à¤°à¤¿à¤¤ हो गया। वह कहीं से à¤à¤• पाषाण ले आया और अपने घर के à¤à¤•à¤¾à¤‚त सà¥à¤¥à¤² में बैठकर à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤µ से शिवलिंग की पूजा करने लगा। कà¥à¤› समय बाद वह à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ में इतना लीन हो गया की माता के बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ पर à¤à¥€ वह नहीं गया। माता के बार बार बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ पर à¤à¥€ बालक नहीं गया। कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ मां में उसी समय बालक को पीटना शà¥à¤°à¥ कर दिया और पूजा का सारा समान उठा कर फेंक दिया। धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से मà¥à¤•à¥à¤¤ होकर बालक चेतना में आया तो उसे अपनी पूजा को नषà¥à¤Ÿ देखकर बहà¥à¤¤ दà¥à¤ƒà¤– हà¥à¤†à¥¤ अचानक उसकी वà¥à¤¯à¤¥à¤¾ की गहराई से चमतà¥à¤•à¤¾à¤° हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤—वान शिव की कृपा से वहां à¤à¤• सà¥à¤‚दर मंदिर निरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¹à¥à¤† मंदिर के मधà¥à¤¯ में दिवà¥à¤¯ शिवलिंग विराजमान था à¤à¤µà¤‚ बालक दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सजà¥à¤œà¤¿à¤¤ पूजा यथावत थी। यह सब देख माता à¤à¥€ आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤šà¤•à¤¿à¤¤ हो गई।
जब राजा चंदà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ को इस घटना की जानकारी मिली तो वे à¤à¥€ उस शिवà¤à¤•à¥à¤¤ बालक से मिलने पहà¥à¤‚चे। राजा चंदà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ के साथ-साथ अनà¥à¤¯ राजा à¤à¥€ वहां पहà¥à¤‚चे। सà¤à¥€ ने राजा चंदà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ से अपने अपराध की कà¥à¤·à¤®à¤¾ मांगी और सब मिलकर à¤à¤—वान महाकाल का पूजन-अरà¥à¤šà¤¨ करने लगे। तà¤à¥€ वहां रामà¤à¤•à¥à¤¤ शà¥à¤°à¥€ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤œà¥€ अवतरित हà¥à¤ और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गोप-बालक को गोद में बैठाकर सà¤à¥€ राजाओं और उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ जनसमà¥à¤¦à¤¾à¤¯ को संबोधित किया। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ 'शिव के अतिरिकà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की कोई गति नहीं है। इस गोप बालक ने अनà¥à¤¯à¤¤à¥à¤° शिव पूजा को मातà¥à¤° देखकर ही, बिना किसी मंतà¥à¤° अथवा विधि-विधान के शिव आराधना कर शिवतà¥à¤µ-सरà¥à¤µà¤µà¤¿à¤§, मंगल को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया है। यह शिव का परम शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ à¤à¤•à¥à¤¤ समसà¥à¤¤ गोपजनों की कीरà¥à¤¤à¤¿ बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ वाला है। इस लोक में यह अखिल अनंत सà¥à¤–ों को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करेगा व मृतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤°à¤¾à¤‚त मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होगा।
इसी के वंश का आठवां पà¥à¤°à¥à¤· महायशसà¥à¤µà¥€ नंद होगा जिसके पà¥à¤¤à¥à¤° के रूप में सà¥à¤µà¤¯à¤‚ नारायण कृषà¥à¤£ नाम से पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित होंगे। कहा जाता है à¤à¤—वान महाकाल तब ही से उजà¥à¤œà¤¯à¤¿à¤¨à¥€ में सà¥à¤µà¤¯à¤‚ विराजमान है। हमारे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ गà¥à¤°à¤‚थों में महाकाल की असीम महिमा का वरà¥à¤£à¤¨ मिलता है। महाकाल को वहां का राजा कहा जाता है और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ राजाधिराज देवता à¤à¥€ माना जाता है।