देवी देवताओं की जब à¤à¥€ पूजा पाठकी जाती हैं तो उनके पूजन में पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾, शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ पूजन में उपयोग की जाने वाली सà¤à¥€ सामगà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾ का à¤à¥€ पूरा धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखा जाता हैं । कहा जाता हैं कि माता लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ हो या अनà¥à¤¯ देवी देवता वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की पवितà¥à¤° à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं के साथ उनकों अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ की जाने वाले पदारà¥à¤¥ à¤à¥€ शà¥à¤¦à¥à¤§ व पवितà¥à¤° ही होने चाहिठनहीं तो पूजन का फल बराबर नहीं मिल पाता । शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में कà¥à¤› पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के पूजा योगà¥à¤¯ न मानते हà¥à¤¯à¥‡ à¤à¥€ उनका पूजन में उपयोग करने को कहा गया हैं । जाने आखिर वे कौन सी चीजे हैं जो अशà¥à¤¦à¥à¤§ होते हà¥à¤ à¤à¥€ शà¥à¤¦à¥à¤§ हैं ।
उचà¥à¤›à¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤‚ शिवनिरà¥à¤®à¤¾à¤²à¥à¤¯à¤‚ वमनं शवकरà¥à¤ªà¤Ÿà¤®à¥ ।
काकविषà¥à¤Ÿà¤¾ ते पञà¥à¤šà¥ˆà¤¤à¥‡ पवितà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¿ मनोहरा ॥
उलà¥à¤Ÿà¥€, जानवरों की बीट, नदी का जल आदि के बारे में कहा जाता हैं कि अशà¥à¤¦à¥à¤§ या अपवितà¥à¤° होते है लेकन शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपवितà¥à¤° होने के बाद à¤à¥€ अशà¥à¤¦à¥à¤§ नहीं माना गया हैं । देवी देवताओं पूजन में इनका उपयोग करने को कहा गया हैं, और इनके बिना पूजा पाठà¤à¥€ अधूरा ही माना जाता हैं । इनमें से कà¥à¤› का तो पूजन à¤à¥€ किया जाता हैं ।
1- उचà¥à¤›à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ- अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ गाय का दूध- सà¤à¥€ जानते हैं कि जब गाय का दà¥à¤§ निकाला जाता हैं तो उससे पहले दà¥à¤§ को गाय का बछड़ा ही पीता हैं बछड़ा दà¥à¤§ पीने के बाद गाय के थनों को दà¥à¤§ पीकर जà¥à¤ ा (उचà¥à¤›à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ) कर देता है, लेकिन फिर à¤à¥€ गाय का दà¥à¤§ पवितà¥à¤° ही माना जाता हैं और पूजा पाठमें उपयोग किया जाता हैं यहां तक जà¥à¤ ा होते हà¥à¤ à¤à¥€ à¤à¤—वान शिव पर चढ़ता हैं ।
2- शिव निरà¥à¤®à¤¾à¤²à¥à¤¯à¤‚- अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ गंगा का जल- शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में बताई गई कथा के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° गंगा जी का अवतरण सà¥à¤µà¤°à¥à¤— से सीधा à¤à¤—वान शिव जी के मसà¥à¤¤à¤• पर हà¥à¤† था, और शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° नियम यह हैं कि शिवजी पर चढ़ायी हà¥à¤ˆ हर चीज़ निरà¥à¤®à¤¾à¤²à¥à¤¯ है, लेकिन फिर à¤à¥€ निरà¥à¤®à¤¾à¤²à¥à¤¯ होने के बाद à¤à¥€ गंगाजल को सबसे पवितà¥à¤° माना जाता हैं ।
3- वमनमà¥- शहद- ये बात तो हर कोई जानता हैं कि मधà¥à¤®à¤–à¥à¤–ी जब फूलों का रस लेकर अपने छतà¥à¤¤à¥‡ पर आती तो वह अपने मà¥à¤– से उस रस की शहद के रूप में उलà¥à¤Ÿà¥€ करती है । लेकिन वही उलà¥à¤Ÿà¥€ किया हà¥à¤† शहद पूजन में, पितरों के शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§ तरà¥à¤ªà¤£ में पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— होता हैं, साथ इसी शहद से अनेक रोग à¤à¥€ दूर हो जाते हैं ।
4- शव करà¥à¤ªà¤Ÿà¤®à¥- रेशमी वसà¥à¤¤à¥à¤°- रेशम के वसà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को बनाने के लिये रेशमी कीडे़ को उबलते हà¥à¤¯à¥‡ पानी में डाला जाता है और उस कीड़े की मौत हो जाती है, उसके बाद ही रेशम मिलता हैं उसी रेशम से कपड़े à¤à¥€ बनते हैं । लेकिन फिर à¤à¥€ पूजन में रेशमी वसà¥à¤¤à¥à¤° पहनकर बैठने का विधान हैं ।
5- काक विषà¥à¤Ÿà¤¾- कौठका मल- कौवा पीपल पेड़ों के फल खाता है और उन फलों के बीज अपनी विषà¥à¤Ÿà¤¾ में इधर उधर छोड़ देता है, जिस कारण अधिकर पेड़ पौधे यहां वहां उग जाते है, अकà¥à¤¸à¤° देखने में आता की पीपल के पेड़ अपने आप बहà¥à¤¤ कम ही उगते है लेकिन पीपल काक विषà¥à¤Ÿà¤¾ से ही उगता है, फिर à¤à¥€ पवितà¥à¤° है, पूजा जाता हैं ।